Monday 29 April 2024

मन कि बात

                        मुहब्बत में जो खता होती है                                 उसकी खुशबू ही जुदा होती है                 इश्क उस से ही किया जाता है                              जिस से उम्मीदे वफ़ा होती है                       मौत से जिस्म ही नहीं मरता                                दिल से धड़कन भी जुदा होती है                       सब्र करने से पता चलता है                                दर्दे दिल की भी दवा होती है                   उसकी कुदरत में एक शय है जो                               मेरी चाहत पे फ़ना होती है                  मौत ही है कि जो नहीं आती                              जिन्दगी रोज़ खफा होती है                                                               
                                                                 क..   देवेन्द्र 

Sunday 5 March 2017

dosti

                         कुछ रंग प्यार के ऐसे भी           
      
 डियर ,  
                         हाय     में तुम से दोस्ती करना चाहता हु आप की क्या राय  है!
                     हर रोज कहना चाहता  था ! पर कह नहीं पाया 
                  पता नहीं तुम से क्यु  दोस्ती करना चाहता हु कुछ समझ  में नहीं आता है !
           
                            अपने हाथों की लकीरों में बसा ले मुझको
                                                            मैं हूँ तेरा तो नसीब अपना बना ले मुझको 
     अब  आगे आप की मरजी  क्यु की  आप  की  भी ज़िंदग़ी  है  मे कोई जबर दशति  नहीं करूँगा ! शायद आप का दोस्त है तो आप मना कर सकती  हो   पर हा वापस  जवाब देना !
                        
                                चलते रहते हैं कि चलना है मुसाफ़िर का नसीब
                                                 सोचते रहते हैं किस राहग़ुज़र के हम हैं

        और  हा  आगे किसी को मत बोलना  ये बात हम दोनों तक ही रहनी चाहिए  आगे आप  की मर्जी !
सच बता हु तुम बोत अची  हो पर हा  तुम डरती बोत हो इतना भी मत डरा करो जोभी  तुम से दोस्ती करेगा  वो बोत खुश रहेगा आगे आप की मर्जी !



Thursday 18 August 2016

गोपी ढाबे वाला

बहुत दिनों बाद हुआ आना 
इस पुराने शहर में 
वहीं रुकता हूँ 
वहीं खाता हूँ खाना 
उसी बरसों पुरानी मेज पर 
उस पुराने से ढाबे में। 

कुछ भी नहीं बदला है 
नहीं बदली है गोपी ढाबे वाले की 
वह पुरानी-सी कमीज 
काँधें पे पुराना गमछा 
बातचीत का उसका अंदाज। 

वैसा ही था 
तड़के वाली दाल का भी स्वाद 
तंदुरी रोटी की महक। 

कुछ भी नहीं बदला 
यहाँ तक की ग्राहकों की शक्लें 
उनकी बोल-चाल का ढंग 
ढाबे के बाहर खड़े सुस्ता रहे 
खाली रिक्शों की उदासी तक। 

उस कोने वाली मेज पर 
वैसे ही बैठा खा रहा है खाना 
चुपचाप एक लड़का 
कुछ सोचता हुआ-सा, चिन्तित 
शायद वह भी ढूँढ़ रहा है ट्यूशन 
या कोई पार्ट टाईम जॉब 
शायद करना है जुगाड़ 
अभी उसे कमरे के किराया का। 

सोच-सोच कर कुम्हला रहा है उसका मन 
कि कर भी पाएगा पढ़ाई पूरी 
या धकेल देगा वापिस यह शहर 
उन पथरीले पहाड़ों पर 
जहाँ उगती है ढेर सारी मुसीबतें-ही-मुसीबतें 
जहाँ दीमक लगे जर्जर पुलों को 
ईश्वर के सहारे लाँघना पड़ता है हर रोज। 

जहाँ जरा-सा बीमार होने का मतलब है 
जिन्दगी के दरवाजे पर 
मौत की दस्तक। 

हैरान हूँ और खुश भी 
दस वर्षों के बाद भी 
नहीं भूला है गोपी 
अपने ग्राहकों की शक्लें 
पूछता रहा आत्मीयता से 
घर-परिवार की सुख शान्ति। 

इस बीच बहुत कुछ बदल गया 
इस शहर में 
बड़े-बड़े माल सेन्टरों ने 
दाब लिया है 
बड़े-बड़े लोगों का व्यापार 
बड़ी-बड़ी अमीर कंपनियाँ 
समा गई हैं बड़ी विदेशी 
कंपनियों के पेट में। 

नाम-निशान तक नहीं रहा 
कई नामचीन लोगों का। 

पुराने दोस्त इस तरह मिले 
इतना भर दिया वक्त 
जैसे पूछ रहा हो कोई अजनबी उनसे 
अपने गंतव्य का पता। 

निरन्तर विकसित हो रहे इस शहर में 
उस गोपी ढाबे वाले की आत्मीयता ने 
बचाए रखी मेरे सामने मेरी ही लाज। 

सभी पुराने दोस्तों के बारे में भी 
पूछता रहा बार-बार। 

खास हिदायत देकर कहा उसने 
रोटी बाँटने वाले लड़के को 
बाबू जी खाना खाते हुए 
पानी में नींबू लेते हैं जरूर। 

मैं हैरान था और खुश भी 
कि इस तरह की बातें तो 
माँएँ ही रखती हैं याद 
अपने बेटों के बारे में। 

क्या इतना गहरे बैठे हुए थे 
उसके अंतस में हम। 

खाने के बाद गोपी ढाबे वाले ने.!       

                                               
                         
                                                               

Apni mathar bhumi ka bacha bacha Ram

चंदन है इस देश की माटी तपोभूमि हर ग्राम है
हर बाला देवी की प्रतिमा बच्चा बच्चा राम है || ध्रु ||
हर शरीर मंदिर सा पावन हर मानव उपकारी है
जहॉं सिंह बन गये खिलौने गाय जहॉं मॉं प्यारी है
जहॉं सवेरा शंख बजाता लोरी गाती शाम है || 1 ||
जहॉं कर्म से भाग्य बदलता श्रम निष्ठा कल्याणी है
त्याग और तप की गाथाऍं गाती कवि की वाणी है
ज्ञान जहॉं का गंगाजल सा निर्मल है अविराम है || 2 ||
जिस के सैनिक समरभूमि मे गाया करते गीता है
जहॉं खेत मे हल के नीचे खेला करती सीता है
जीवन का आदर्श जहॉं पर परमेश्वर का धाम है || 3 ||

विपदाओं से रक्षा करो, यह न मेरी प्रार्थना./




  
विपदाओं से रक्षा करो-
     यह न मेरी प्रार्थना,
      यह करो : विपद् में न हो भय।
दुख से व्यथित मन को मेरे
       भले न हो सांत्वना,
          यह करो : दुख पर मिले विजय।                         
                                                                      
                                                                   देवेन्द्र